तन्हाई।।
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तन्हाई।।
-मिलिक अहमद
वोह गाने जो कभी सबसे अज़ीज़ हुवा करते थे
आज उसे भी भुला दिया।
तेरे ग़म के सहारे ने आज मुझे
फिर खुद से मिला दिया!
हज़ारों शायरों ने अपनी शायरी में
तन्हाई को क्या खूब बयां किया है!
सुकून इसमें है, इसे एहसास करके तो देखिए।
तन्हाई में डूबना या फिर डूब के तैरना;
एहसास बड़ा ही अनोखा होता है!
लेकिन ऐ दोस्त....
तन्हाई बड़ी ही कमबख्त चीज है,
इसमें डूब कर कोई अपने आप को खो देता है
तो कोई मंज़िल ढूंढ लेता है।
कुछ लोग कहते है...
सफर तन्हाई में बड़ी मुश्किल से कटते हैं;
कुछ इन्हीं तन्हाई में, सफर का लुत्फ उठा लेते है।
तन्हाई का आलम मुझ पे कुछ ऐसा छाया था;
तुमसे बिछड़ते बिछड़ते मैने खुद को पा लिया!
तुम्हारी याद में अक्सर उन रास्तों पे चले जाना
जो डायरी के पन्नों तक जाता है;
लफ्ज़ ना होते होए भी,
कलम के सहारे कुछ यूं ही
यादों के समुंदर में गोते लगाते होए;
अल्फ़ाज़ के मोती ढूंढना;
तूफा़नों में गिरफ्तार मुसाफिर को 
आज फिर साहिलों से मिला दिया।
यूं तो तेरी याद के ज़हर ने,
दिल की ज़मीं को बंजर बना दिया था!
लेकिन आज उन्हीं बंजर ज़मीं पे
फिर से फूल खिलता दिख रहा है।


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