जुदा हो कर भी!
जुदा हो कर भी!
जुदा हो कर भी
तेरे होने का एहसास आज भी है।
यादों की महफ़िल में
तेरा ज़िक्र आज भी है।
यूं तो दिनभर गुज़ारा कर लेते है
पर रातों को...
तेरी यादें आज भी सताती है।
क्यों की...
जुदा हो कर भी
तेरे होने का एहसास आज भी है।
तू जिस पियाली मे चाय पिया करती थी
उसमे तेरे होंठो का एहसास आज भी है।
वोह तुझे ठंड लगने पर
मेरी जैकेट का इस्तेमाल करना।
बिना वजह मुझसे लिपटे रहना।
बात बात पे गाल पे किस करना।
वोह सारे एहसास आज भी है।
बस तेरी ही कमी
जो आज तक पूरी नहीं हो रही है।
क्यों की...
जुदा हो कर भी
तेरे होने का एहसास आज भी है।
तेरे होने का एहसास आज भी है।
यादों की महफ़िल में
तेरा ज़िक्र आज भी है।
यूं तो दिनभर गुज़ारा कर लेते है
पर रातों को...
तेरी यादें आज भी सताती है।
क्यों की...
जुदा हो कर भी
तेरे होने का एहसास आज भी है।
तू जिस पियाली मे चाय पिया करती थी
उसमे तेरे होंठो का एहसास आज भी है।
वोह तुझे ठंड लगने पर
मेरी जैकेट का इस्तेमाल करना।
बिना वजह मुझसे लिपटे रहना।
बात बात पे गाल पे किस करना।
वोह सारे एहसास आज भी है।
बस तेरी ही कमी
जो आज तक पूरी नहीं हो रही है।
क्यों की...
जुदा हो कर भी
तेरे होने का एहसास आज भी है।
लेखक:मिलीक अहमद।
(सभी अधिकार लेखक द्वारा आरक्षित है। उचित अनुमति के बिना नकल करना एक अपमानजनक कार्य है)


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