यादों के साथ कुछ लम्हे।
यादों के साथ कुछ लम्हें।
वो दिन भी कितनी हसीन थी,
जब हम साथ होआ करते थे।
न हमे तूफानों की डर थी,
न साहिलो की परवाह।
तुम बिन हर दिन,
सदियों जैसे गुजरती है।
मुश्किल है जीना,
पर जीना भी जरूरी है।
वोह दिन वोह पल उन्हें कैसे भोलाओं
जब हम छोटे छोटे बातो पे
हस्ते थे, झगड़ते थे।
तुम्हारे हर एक मुस्कान में
मेरा हजारों खुशियां छुपी रहती थी।
पैरों में आज ये कैसे जंजीर है
मिलने के चाह है, पर जंजीरें रुक रही हैं।
लेखक:
मिलिक अहमद
(आपसे निवेदन है कि कृपया करके आप हमे कॉमेंट में बताएं आपको हमारी ये कविता कैसी लगी। धन्यवाद)
(आपसे निवेदन है कि कृपया करके आप हमे कॉमेंट में बताएं आपको हमारी ये कविता कैसी लगी। धन्यवाद)
(लेखक द्वारा आरक्षित सभी अधिकार, बिना उचित अनुमति के नकल करना एक अपमानजनक कार्य है)


nice
ReplyDeleteधन्यवाद🙏
DeleteVery nice bro😎😎
ReplyDeleteThank you so much 😍
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